कबीर दास की जीवनी




माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।


पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय। जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।


दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय। जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय।।