कबीर दास की जीवनी




कबीर दास, भारतीय संत-कवि थे जो 15वीं और 16वीं सदी के दौरान रहे। उन्हें हिंदी भाषा के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है। कबीर दास का जन्म संत कवि सम्राट रैदास के गुरुकुल में वाराणसी के निकट स्थित काशीपुर गांव में हुआ था। उनका जन्म सन् 1398 ई. में हुआ था।

कबीर दास का वास्तविक नाम ‘रैदास’ था, लेकिन उन्हें कबीर बाबा या कबीर साहेब के नाम से भी जाना जाता है। कबीर दास ने अपने जीवनकाल में हिंदू-मुस्लिम धर्म के सारे भेद भूलकर एकता और सामंजस्यपूर्ण समाज के पक्ष में प्रचार किया। उनके द्वारा लिखित दोहे और भजन हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

कबीर दास के विचार भारतीय संस्कृति, धर्म, समाज और व्यक्तिगत जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। उनकी रचनाएँ अपने साधारण भाषा, सरलता और समझदारी के लिए प्रसिद्ध हैं। कबीर दास के दोहे आज भी लोगों के मन में भक्ति और धार्मिकता के भाव जागृत करते हैं और सभी समुदायों को एकता और समरसता के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

कबीर दास के अनमोल दोहे:

  1. माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे। एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।।
  2. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
  3. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय। जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।।
  4. दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय। जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय।।

इस तरह से, कबीर दास की रचनाएँ उनके जीवन, विचार, और दर्शन को समर्थन करती हैं और लोगों को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। उनके दोहों में छिपी गहरी सत्यता और ज्ञान आज भी हमें धार्मिकता और एकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।

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