Shayri:

सिखा देती हैं चलना ठोकरें भी राहगीरों कोकोई रस्ता सदा दुश्वार हो ऐसा नहीं होता !

-निदा फ़ाज़ली

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एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा |

-निदा फ़ाज़ली

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गलतियों से जुदा तुम भी नहीं मैं भी नहीं, हम दोनों इंसान है खुदा तू भी नहीं मैं भी नही। तू मुझे मैं तुझे इल्जाम तो देते है मगर अपने अंदर झांकता तू भी नहीं मैं भी नहीं। 🙏🏻

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होते रहेंगे तमाशे  ताउम्र,तुम अपने किरदार का ख्याल रखना।

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ऐ मेरे हौसले तू यूँ ना हार मान,जिंदगी में अभी कई फर्ज निभाने बाकी हैं। 

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हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,जिस को भी देखना हो कई बार देखना 

-निदा फ़ाज़ली

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वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन , उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा | साहिर लुधियानवी

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मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर , लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

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मंज़िले मिले, ये तो मुकद्दर की बात है , हम कोशिश ही न करे, ये तो गलत बात है।

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